Company Not hiring in India 2025 भारत में कर्मचारियों की भर्ती क्यों नहीं कर रही हैं?
कंपनियाँ भारत में कर्मचारियों की भर्ती क्यों नहीं कर रही हैं?
भारतीय नौकरी बाजार में हाल के वर्षों में कई बदलाव देखे गए हैं। जहाँ एक ओर देश तेजी से विकास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर रोजगार सृजन की गति धीमी दिखाई देती है। यह सवाल कई लोगों के मन में है कि आखिर क्या कारण है कि कंपनियाँ भारत में उस गति से नए कर्मचारियों की भर्ती नहीं कर रही हैं जिसकी उम्मीद की जाती है। आइए, इस जटिल मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को समझते हैं।
1. कौशल अंतर (Skill Gap) और बेमेल
भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उद्योग की जरूरतों और छात्रों के कौशल के बीच एक बड़ा अंतर है। कई कंपनियों को ऐसे योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पाते जिनके पास नौकरी के लिए आवश्यक विशिष्ट कौशल हों। यह बेमेल (mismatch) कंपनियों को नई भर्तियां करने से रोकता है और उन्हें मौजूदा कर्मचारियों को फिर से प्रशिक्षित करने या बाहरी विशेषज्ञों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करता है।
2. ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बढ़ता प्रभाव
तकनीकी प्रगति, विशेषकर ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उदय, पारंपरिक नौकरियों पर बड़ा प्रभाव डाल रहा है। कई रूटीन और दोहराए जाने वाले कार्य अब मशीनों और AI द्वारा किए जा सकते हैं, जिससे मानवीय श्रम की आवश्यकता कम हो रही है। IT सेवाओं, विनिर्माण (manufacturing) और BPO जैसे क्षेत्रों में यह प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। हालाँकि AI नए प्रकार की नौकरियाँ भी पैदा कर रहा है, लेकिन इन नई भूमिकाओं के लिए आवश्यक कौशल उच्च स्तर के होते हैं और इनकी संख्या अभी पुरानी नौकरियों की कमी को पूरा नहीं कर पा रही है।
3. आर्थिक चुनौतियाँ और कंपनियों की सतर्कता
वैश्विक और घरेलू आर्थिक अनिश्चितताएँ भी कंपनियों के भर्ती निर्णयों को प्रभावित करती हैं। धीमी जीडीपी वृद्धि, उपभोक्ता मांग में कमी और बढ़ती लागत जैसी चुनौतियाँ कंपनियों को सतर्क रहने पर मजबूर करती हैं। वे लागत कम करने और दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिससे नई भर्तियां टाल दी जाती हैं या मौजूदा कर्मचारियों का ही बेहतर उपयोग किया जाता है। कई कंपनियां 2024-2025 में भी हायरिंग को लेकर सतर्कता बरत रही हैं।
4. औद्योगिक विकास में कमी और औपचारिक क्षेत्र का विस्तार
भारत में बड़े पैमाने पर उद्योगों का विकास अपेक्षित गति से नहीं हो पाया है, खासकर विनिर्माण क्षेत्र में, जो बड़ी संख्या में रोजगार सृजित कर सकता है। इसके अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अनौपचारिक क्षेत्र (informal sector) में है, जहाँ श्रमिकों को अस्थिर आय और सामाजिक सुरक्षा लाभों की कमी का सामना करना पड़ता है। औपचारिक क्षेत्र का धीमा विस्तार भी रोजगार के गुणवत्तापूर्ण अवसरों की कमी का एक प्रमुख कारण है।
5. जनसांख्यिकीय दबाव और रोजगार सृजन की आवश्यकता
भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, और हर साल लाखों युवा कार्यबल में शामिल होते हैं। इस विशाल जनसांख्यिकीय लाभांश (demographic dividend) को भुनाने के लिए पर्याप्त रोजगार सृजित करना एक बड़ी चुनौती है। यदि पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण नौकरियाँ पैदा नहीं की जाती हैं, तो यह जनसांख्यिकीय लाभांश एक जनसांख्यिकीय आपदा में बदल सकता है, जिससे बेरोजगारी और सामाजिक अशांति बढ़ सकती है।
6. सरकारी नीतियाँ और नियामक वातावरण
कुछ क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण (land acquisition) और श्रम कानूनों (labor laws) से संबंधित नियामक बाधाएं भी बड़े उद्योगों के विस्तार और नई नौकरियों के सृजन को धीमा कर सकती हैं। हालांकि सरकार रोजगार सृजन और कौशल विकास के लिए कई पहल कर रही है, लेकिन उनके पूर्ण प्रभाव में समय लगता है।
निष्कर्ष
भारत में कंपनियों द्वारा भर्ती में कमी कोई एक कारण का परिणाम नहीं है, बल्कि यह कई आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक कारकों का एक जटिल मिश्रण है। इस चुनौती से निपटने के लिए कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना, शिक्षा प्रणाली को उद्योग की जरूरतों के अनुरूप ढालना, विनिर्माण क्षेत्र में निवेश बढ़ाना और AI जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए कार्यबल को तैयार करना महत्वपूर्ण है। सही नीतियों और प्रयासों के साथ, भारत अपने विशाल मानव संसाधन का पूरी तरह से लाभ उठा सकता है और एक मजबूत और समावेशी नौकरी बाजार का निर्माण कर सकता है।
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